बुधवार, 19 अगस्त 2009

एक रचना...नही रही..

कमसे कम तस्वीरों के रूप मे ये यादें हैं!!'बर्ड हाउस' मे स्विच है...इस तस्वीर का close up दे चुकी हूँ...जहाँ पत्थर रचे हुए दिख रहे हैं, वो एक 'dry water fall' का concept था...
उसपे केवल रेत डाल रखी थी..और फाइबर के बने लैंप शेड लगा दिए थे..रात मे वो पारदर्शी पत्थरों का आभास दिलाते...

जो सुराही दार मिट्टीका घडा दिख रहा है, वह 'water scuptor' बनाया था...छोटी-मोटर पास ही मे ज़मीन मे गाड़ दी थी...ढक्कन पे गमले रख दिए थे...

सोमवार, 10 अगस्त 2009

कहाँ गए वो गुलशन ?

बागवानी के, अज़ीज़ पाठकों ने, सवाल किया,'कहाँ गए वो बगीचे ?'

सच तो ये है,कि, जितनी भी तस्वीरें बगीचों की रचनाओं की पोस्ट की हैं,उनमेसे एक भी नही बचा है...और न जाने कितने किए,जिनकी तस्वीरें नही लीं..लेकिन वो भी नही बचे..वजूहात कई रहे..कितने तो सरकारी मकान थे, दफ्तर थे...किसी नए अफसर के आने के बाद, अपने,अपने शौक़ तथा नज़रिए के मुताबिक़ बगीचे बनाये या, निकले जाते हैं...उसपे किसी का बस नही...शायद इसलिए,होगा,के,मै जब बागवानी पे लिखती हूँ,तो मनमे एक दर्द सिमट आटा है..उन बगीचों से सो एहसास जुड़े हुए थे...जितनी मेहनतसे पेड़ पौधों को लगाया गया था, वो सब धराशायी हो गए...एक निर्ममता के साथ..

जिस स्कूल के बगीचे की तस्वीर दी है, वो स्कूल ही वहाँ नही रही..एक मॉल बन गया..और जो कुछ चाँद रोज़ वो स्कूल थी भी,तो बगीचा,तथा उसके पीछे एक बेहद सुंदर,पुराना बंगला हुआ करता था...जिस मे नर्सरी का वर्ग चलता, वो बँगला भी तोड़ दिया गया...वहाँ एक इमारत खडी हो गयी..

इस स्कूल मे बच्चों के साथ लगी रहती थी..एक शिक्षिका के तौरसे नही...उनके साथ खेलने आती औए खेल्ही खेलमे उनसे बीज लगवाती...उन्हें पौधों के 'क़लम' बनाना सिखाती..कटिंग सिखाती...वो अपने घर से छोटे,छोटे मिट्टी के गमले लेके आते...जब उनमे कोंपल फूटते,तो इन बच्चों के चेहरों पे ख़ुशी देखने लायक होती...वो रोना धोना सब भूल जाते...!

वर्ग मे कुल ३०/३२ बच्चे हुआ करते...तक़रीबन रोज़ही एक बीज,या , एक पौधा हर बच्चा लगाता..कई बार, स्कूल की क्यारियों मे..सोचिये, जिन छ: साल मैंने वहाँ काम किया,कितने पौधे लगे होंगे? और वो महानगर नही था...सभी के पास पौधे लगानेकी जगह हुआ करती..कईयों के पास छज्जा होता...और कई बच्चों के पिता वहाँ के उद्योग पती थे...उनके कारखानों मे काफ़ी जगह हुआ करती...वहाँ,इन बच्चों ने कितने ही पेड़ पौधे लगाये..वो होंगे..मैंने देखे नही..लेकिन,हाँ, कभी कोई मिल जाता है,तो बता देता है..उनमेसे कई शादी शुदा हैं...जिन्हों ने ये धरोहर आगे बढ़ाई है...और अपने हाथ से लगे काफ़ी पेड़ पौधों को बचाए रखा है...मैंने ख़ुद अपने हाथों से उस स्कूल के परगन मे अनगिनत पेड़ लगाये थे..सब धराशायी हो गए..और उन्हें धराशायी करनेवाले सब 'बाहुबली' थे..हैं...

खैर!

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

इस ब्लॉग पे मैंने मैंने:

'नेकी कर, कुए मे डाल' इस शीर्षक तले,संस्मरण लिखे हैं..जिस सहेली की बात कर रही हूँ,वो इसकी मुख्याद्यापिका थी...उससे वो स्कूल छीन ली गयी..उसके पिता मालिक,तथा trustee थे..ये सब कैसे,क्यों हुआ, उसपे क्या बीती..मैंने उसका कितना साथ दिया...ये सब 'नेकी कर...' इस लेख मे मौजूद है..एक बेहद दर्द नाक कहानी...ऐसा होगा,कभी सोचा न था..लेकिन ना वो सहेली अब मेरी 'सखी' रही..ना ही वो स्कूल रहा ..चंद तस्वीरें...बस चंद तस्वीरें,मेरे तस्सवूर मे जी रही हैं..उस बागवानी की..उन बच्चों की...और मेरी उस सहेली के साथ गुज़ारे दिनों की..उसके साथ खिंची...जो उसने ख़ास खिंचवाई थीं...क्योंकि उसे हमारी दोस्ती पे बेहद नाज़ था...वो तस्वीरें,कलही हाथ लगीं...गर वो सब घटा नही होता,तो मै,उसके साथ खींची अपनी तस्वीरें ज़रूर ब्लॉग पे डाल देती..मगर अफ़सोस!

"दिलों मे बने गुलशन हुए बियाँ बाँ,
हम किन बगीचों की बात करें?"

शनिवार, 8 अगस्त 2009

एक स्कूल मे की गयी बगीचे की रचना...जो अब नही रही..बहार की ओरसे पूरी तरह सुरक्षा रखी गयी थी..एक वायर तथा लकडी की फेंस बनाके...