शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

सूखा झरना!


इस तस्वीर की एक दूरसे ली छवी पोस्ट कर चुकी थी...ये पाससे ली है...ऊँचें रचे हुए पत्थरों पे नदीओं में मिलने वाले सफ़ेद, गोल पत्थर डाल रखे थे....पानी की फुहार सुराही में से निकलता थी जिसे water sculpture ..कहा जाता है...यहाँ पे फाइबर के बने लैंप लगाये थे, जब रातमे जलाये जाते थे, तो लगता था पत्थर से छनके रौशनी आ रही है....अब ये कवल तस्वीरें बगीचे तो रहे नही...बगीचों की आसान तरीक़ेसे बनानेके लिए ये कुछ सुझाव मात्र हैं!
इसे भी मै अपने 'फाइबर आर्ट'मे तब्दील कर चुकी हूँ...किसी दिन उसकी तस्वीर भी पोस्ट कर दूँगी...!

16 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi khoobsurat hai ye kona bhi .man ko mohne wala .aapki baat hi nirali hai .

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  2. प्रिय ब्लॉगर,
    सादर ब्लॉगस्ते,
    आपका सन्देश अच्छा लगा.
    क्यों आप भी अपन के ब्लॉग पर
    पधारें. "एक पत्र मुक्केबाज विजेंद्र
    के नाम" आपके अमूल्य सुझाव की
    प्रतीक्षा में है.

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  3. वो दूर से ली गयी थी, यह पास से से है, जितनी मशक्कत आप कर रही हैं, बहुत कम लोग कर सकेंगे और मैं तो बिलकुल नहीं. आपके हाथों में विधाता ने जो हुनर बख्शा वो सब को तो दिया नहीं, फिर मेरे जैसे आलसी लोग इस प्रदेश में गोल पत्थरों के टुकड़े तलाश करें, गोल पत्थरनुमा इंसान तो मिल जायेंगे लेकिन मेरे लिए कला का नमूना बनने को तैयार थोड़े होंगे.
    'जिसका काम, उसी को साजे
    और करे तो डंडा बाजे.'
    हम तो बाज़ आये आपकी शिक्षा से. फोटो पहले वाली भी अच्छी थी, यह भी अच्छी थी.

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    दृष्टि पड़ी मधुस्रोतस्विनी की
    मचली मादक मधुबाला
    छलके कूल फूल दल सीले
    दहक उठी गीली ज्वाला

    शमा जली तो रश्मि किरण की
    फैली चारों तरफ प्रभा
    स्वप्नों के सतरंग वसन में
    चित में चमकी मधुबाला


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  6. khubsurat. achha laga. kuch alag hatkar dikha aur mann ko sukun mila. all d best.

    KATYA

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  7. बहुत सुन्दर पोस्ट
    बहुत बहुत आभार.........

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  8. शुक्रिया ,
    देर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
    उम्दा पोस्ट .

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  9. सचमुच गज़ब का दिमाग पाया है आपने .

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