ये पाठशाला के लिया बनाया था! आसान रखरखाव के लिए, लॉन के बदले मै अक्सर रेती का प्रयोग करती थी..पानीम, रामबाण, वाटर लिली आदि पौधे गमले रखके उनमे लगा देती ...सफाई रहनेके लिए उनमे मेंडक और मछलियाँ रहती..बद्कें भी...जिन्हें देख बच्चे बड़े खुश रहते...बच्चों से ही पेंट करवाके वहां पे अलग,अलग आकार के सुराहीदार मटके रखवाती...एक काला मटका नज़र आ रहा है...
bagiche ki ye sazawat mere banasthali ke bagiche ki tarah hai jahan main padhti rahi ,ise dekh purani yaade avam jagah taaza ho gayi .prakriti se mujhe behad lagao hai .
जवाब देंहटाएंhmmmmmm............ battaken mujhe bhi kaafi achci lagtin hain.......... main aaun dekhne?
जवाब देंहटाएंशमाजी ,
जवाब देंहटाएंमेहदी हसन साहब की गाई एक ग़ज़ल है
फूल ही फूल खिल उठे मेरे मयखाने में
आप क्या आए बहार आ गई वीराने में।
आपके काम को ये पंक्तियां समर्पित करना चाहता हूं । कृप्या अनुमति दें।