सोमवार, 10 अगस्त 2009

कहाँ गए वो गुलशन ?

बागवानी के, अज़ीज़ पाठकों ने, सवाल किया,'कहाँ गए वो बगीचे ?'

सच तो ये है,कि, जितनी भी तस्वीरें बगीचों की रचनाओं की पोस्ट की हैं,उनमेसे एक भी नही बचा है...और न जाने कितने किए,जिनकी तस्वीरें नही लीं..लेकिन वो भी नही बचे..वजूहात कई रहे..कितने तो सरकारी मकान थे, दफ्तर थे...किसी नए अफसर के आने के बाद, अपने,अपने शौक़ तथा नज़रिए के मुताबिक़ बगीचे बनाये या, निकले जाते हैं...उसपे किसी का बस नही...शायद इसलिए,होगा,के,मै जब बागवानी पे लिखती हूँ,तो मनमे एक दर्द सिमट आटा है..उन बगीचों से सो एहसास जुड़े हुए थे...जितनी मेहनतसे पेड़ पौधों को लगाया गया था, वो सब धराशायी हो गए...एक निर्ममता के साथ..

जिस स्कूल के बगीचे की तस्वीर दी है, वो स्कूल ही वहाँ नही रही..एक मॉल बन गया..और जो कुछ चाँद रोज़ वो स्कूल थी भी,तो बगीचा,तथा उसके पीछे एक बेहद सुंदर,पुराना बंगला हुआ करता था...जिस मे नर्सरी का वर्ग चलता, वो बँगला भी तोड़ दिया गया...वहाँ एक इमारत खडी हो गयी..

इस स्कूल मे बच्चों के साथ लगी रहती थी..एक शिक्षिका के तौरसे नही...उनके साथ खेलने आती औए खेल्ही खेलमे उनसे बीज लगवाती...उन्हें पौधों के 'क़लम' बनाना सिखाती..कटिंग सिखाती...वो अपने घर से छोटे,छोटे मिट्टी के गमले लेके आते...जब उनमे कोंपल फूटते,तो इन बच्चों के चेहरों पे ख़ुशी देखने लायक होती...वो रोना धोना सब भूल जाते...!

वर्ग मे कुल ३०/३२ बच्चे हुआ करते...तक़रीबन रोज़ही एक बीज,या , एक पौधा हर बच्चा लगाता..कई बार, स्कूल की क्यारियों मे..सोचिये, जिन छ: साल मैंने वहाँ काम किया,कितने पौधे लगे होंगे? और वो महानगर नही था...सभी के पास पौधे लगानेकी जगह हुआ करती..कईयों के पास छज्जा होता...और कई बच्चों के पिता वहाँ के उद्योग पती थे...उनके कारखानों मे काफ़ी जगह हुआ करती...वहाँ,इन बच्चों ने कितने ही पेड़ पौधे लगाये..वो होंगे..मैंने देखे नही..लेकिन,हाँ, कभी कोई मिल जाता है,तो बता देता है..उनमेसे कई शादी शुदा हैं...जिन्हों ने ये धरोहर आगे बढ़ाई है...और अपने हाथ से लगे काफ़ी पेड़ पौधों को बचाए रखा है...मैंने ख़ुद अपने हाथों से उस स्कूल के परगन मे अनगिनत पेड़ लगाये थे..सब धराशायी हो गए..और उन्हें धराशायी करनेवाले सब 'बाहुबली' थे..हैं...

खैर!

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

इस ब्लॉग पे मैंने मैंने:

'नेकी कर, कुए मे डाल' इस शीर्षक तले,संस्मरण लिखे हैं..जिस सहेली की बात कर रही हूँ,वो इसकी मुख्याद्यापिका थी...उससे वो स्कूल छीन ली गयी..उसके पिता मालिक,तथा trustee थे..ये सब कैसे,क्यों हुआ, उसपे क्या बीती..मैंने उसका कितना साथ दिया...ये सब 'नेकी कर...' इस लेख मे मौजूद है..एक बेहद दर्द नाक कहानी...ऐसा होगा,कभी सोचा न था..लेकिन ना वो सहेली अब मेरी 'सखी' रही..ना ही वो स्कूल रहा ..चंद तस्वीरें...बस चंद तस्वीरें,मेरे तस्सवूर मे जी रही हैं..उस बागवानी की..उन बच्चों की...और मेरी उस सहेली के साथ गुज़ारे दिनों की..उसके साथ खिंची...जो उसने ख़ास खिंचवाई थीं...क्योंकि उसे हमारी दोस्ती पे बेहद नाज़ था...वो तस्वीरें,कलही हाथ लगीं...गर वो सब घटा नही होता,तो मै,उसके साथ खींची अपनी तस्वीरें ज़रूर ब्लॉग पे डाल देती..मगर अफ़सोस!

"दिलों मे बने गुलशन हुए बियाँ बाँ,
हम किन बगीचों की बात करें?"

11 टिप्‍पणियां:

  1. दिलों मे बने गुलशन हुए बियाँ बाँ,
    हम किन बगीचों की बात करें

    आज के dour में जब मन sikudte जा रहे हैं.............. puraane rishte kahaan तक taaza रह sakenge.......... इंसान की bhookh ped podhon को ख़त्म कर के ही dam legi

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  2. दिलों मे बने गुलशन हुए बियाँ बाँ,
    हम किन बगीचों की बात करें?"
    बागवानी के प्रति आप का अनुराग सराहनीय हॆ

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  3. गुलशन बियाबान हुए तो क्या...गमलों में सपनो को साकार कीजिये ..!!

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  4. Bahut Barhia...Auron se kuchh alag...

    http://hellomithilaa.blogspot.com
    Mithilak Gap...Maithili Me

    http://muskuraahat.blogspot.com
    Aapke Bheje Photo

    http://mastgaane.blogspot.com
    Manpasand Gaane

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  5. वाणीजी ..गमलों मे तो साकार हैं ही ..उनके तो चित्र भी हैं ..! ये तो एक संस्मरण के तौरपे मैंने लिखा था ..जिसका ब्यौरा ,"

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypat.blogspot.com

    इस blogpe 'नेकी कर कुए मे डाल ' इस शीर्षक तहत उस सहेली के बारेमे लिखा है ..बस ,ज़िंदगी तो चलती रहती है ..

    आपने शायद ,मेरी बोनसाई की तस्वीरें देखी नही ..slides भी हैं !तथा अन्य लेख,' बागवानी की एक शाम' या ' बागवानी की एक दोपहर" ये भी मौजूद हैं..गमलों मे तो बागवानी चल रही है..
    comment के लिए तहे दिलसे शुक्रिया !

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  6. हम, ख़ास तौर पर भारतीय, प्रकृति के साथ खिलवाड़ में जितने माहिर हैं, शायद दूसरी कोई कौम नहीं होगी. सरकारी अंधेपन पर कुछ कहना तो बेमानी है ही, आम आदमी में में बढ़ती हुई पैसे की लालसा ने दिल के साथ साथ घर, आंगन, दुकानें और कल-कारखानों को भी सिकोड़ डाला है. फुलवारी या पेड़-पौधे अब कुछ ही बाशऊर लोगों तक सीमित हैं. सरकारी प्रयास या प्रगति पर तो मैं कुछ कहना-सुनना ही नहीं चाहता.
    आपकी तबीयत अब कैसी है. परहेज़ या दवाओं तथा सावधानी बरतने की विशेष जरूरत है. वैसे भी बुढापा बडी खराब चीज़ होता है.

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  7. स्‍वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

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  8. दिलों मे बने गुलशन हुए बियाँ बाँ,
    हम किन बगीचों की बात करें?" sahi kaha aapne...

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  9. shama ji, aapne apne introduction mein likha hai ki u r not a skilled writer but aap bahut achha likhti hain aur achha likhne ke liye achha sochne ki zarurat hoti hai...

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  10. इंसान अपनी इच्छा के सामने किसी को टूल नहीं देता बगीचा क्या वो तो गरिबून के झोंपड़ों पर बुलडोज़र चलाने से बाज़ नहीं आते !!

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  11. आपको पढ़कर समूचे अस्तित्व की जड़ों तक रसाई होती है...आप निस्संदेह गंभीरतापूर्वक प्राणों की सिंचाई कर रहीं हैं...फूल ऐसे ही खिलते हैं तभी तो अंग्रेजी उन्हें रोत कहती है.....
    ROSE = RISE >ROSE >RISEN

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