कलही बरखा रानी को याद किया और आज बरस रही हैं...नीचे बच्चे खूब भीग भीग के शोर मचा रहे हैं..बादल गरज रहे हैं, और मुझे अपने बचपनकी बारिश, बचपन का आँगन, और बचपन का घर इस शिद्दत के साथ याद आ रहा है...
और बागवानी की वो शाम भी..पिछले जून माह की..... जब मेरी बिटिया साथ थी...और मैंने बागवानी शुरू कर दी थी...
आज वही बिटिया, तन और मन से दूर है...मेरे मनसे नही..लेकिन मै उसके मनसे...अभी,अभी, खिड़कियाँ बंद करके लौटी और लिखने लग गयी....
उस शाम की तरह, मेरी बिटिया रानी, तुझे आजभी दुआएँ देती हूँ...और देते,देते, आँखे भी भी पोंछ लेती हूँ...!
कैसा अजीब मौसम होता है ये...कभी तो बिटिया याद दिला देता है...कभी माँ, और माँ का घर, वो दादा, वो दादी...!...कभी बच्चों का बचपन तो कभी अपना बचपन....! और बचपनका आँगन !
एक आँख से रुलाता है...एकसे हँसाता है...!
समझ नही पा रही, कि, ये बातें, "बागवानी " इस ब्लॉग पे पोस्ट करूँ, या "संस्मरणों"मे....!
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Atyant bhavpurn lekhan.
जवाब देंहटाएंशमाजी, बागवानी हो या ललितलेख या आजतक यहांतक, सब पर कलम तो एक ही है, दिमाग एक ही है, हुनर एक ही है और जादू तो वही जाना पहचाना है.
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