Parts of some of my prize winning landscapes waiting to be converted into embroideries.
घरों तथा बगीचों की जब भी रचना करती हूँ,तो मेरा एक ख़ास बातपे आग्रह रहता है...रख रखाव सुलभ हो, तथा मौसम और मूड के मुताबिक हम उसमे चाहे जब बदलाव ला सकें।
अक्सर बगीचा बनाते समय लोगों की धारणा रहती है: हरियाली और गुलाबों के बिना बगीचा कैसे अच्छा लग सकता है!
हरियाली और गुलाबों के लिए खुली जगह और धूप की ज़रूरत होती है। गुलाबों पे बीमारी भी काफ़ी आती है...ख़ास कर हाइब्रिड क़िस्म के गुलाबों पे। इन सब बातों की पूरी जानकारी और उसके साथ शौक़ ना हो,तो, बेहतर है,कि, गुलाब के ४/५ गमले लगा लें...धूप की दिशाके अनुसार उनकी जगह बदलते रहें।
इस तरीक़े को अपनाने मे भी दिक्कतें होती हैं...।गमला गर वज़न मे भारी हो,तो उसे हिलाना मुश्किल...अलावा इसके, मिट्टी कमसे कम हर दो साल मे , बदलनी होती है..खाद, गुडाई, ये सब समय पे हो तभी गुलाब के पौधे सेहेतमंद रह सकते हैं। इन्हें हरसमय निगरानी और तीखी निगेह बानी की ज़रूरत होती है।
गुलाबों पे लगनेवाले कीटक जन्य रोगों मे से एक है, मीली बग। ये कीडा, जो हवामे उड़ता है, और साँस के ज़रिये फेफडों मे भी जा सकता है, राई के दानेसे १० वा हिस्सा छोटा होता होता है...
इतना छोटा जीव लेकिन इसके बारेमे मै एक बात गौर करके हैरान रह गयी...पौधेकी ऊँचाई, गर इन्सान के क़द से अधिक होती है, तो ऊपरकी पत्तियों , फूलों और डालों पे ये अपना कोष, ऊपरी सतेह पे बनाता है...गर पौधा, क़द मे छोटा होता है, या पौधे के निचले हिस्से मे कोष बनाता है,तो पत्तियों /फूलों/टहनियों के नीचेके हिस्से पे अपना कोष बनाता है...! हरेक पत्ती को, वैसे भी, रोज़ाना ऊपर नीचेसे उलट पुलट के देख लेना ज़रूरी होता है...
ऐसे पौधे की छंटाई भी करें तो उड़ के अन्य किसी पौधेपे बैठ , ये फिर खूब फैलता है। वैसेभी छटाई करते वक्त हर कली, पत्ती या टहनी सीधे किसी थैली मे डाल देना ज़रूरी है। काट ने के बाद गर उसे वहीँ पड़ा छोड़ दें तो चंद घंटों मे ये जीव अपना परिवार बढ़ा लेता है ! कहीँ से गर, एकाध टहनी की खाल भी उतर गयी हो,तो, उसके नीचे घुस, ये कीडा जड़ों तक फैल जाता है।
गुलाब के पौधे पे गर हम छटाई करने का तरीक़ा अपनाते हैं, तो गुलाब बढेगा कैसे ? गुलाब की छंटाई का एक ख़ास मौसम होता है, अन्य, साधारण, पौधों की भाँती, इसकी जब चाहें तब छंटाई कर नही सकते। इसके अलावा, गुलाब का पौधा अपने आप मे सुंदर नही होता....इसलिए, जब उसपे फूल नही होते तो वो आकर्षित नही करता। जिनके पास घरके पिछवाडे मे जगह हो,तथा जानकार माली रखने की हैसियत हो, ऐसे ही लोगों ने गुलाब या तत्सम , नाज़ुक पौधों को अपने बगीचे मे लगाना चाहिए, वरना, गुलाब के कारन, सारे बगीचे को नुकसान पोहोंच जाता है।
हरियाली मे से जंगली घाँस हर थोड़े दिनों से निकलना ज़रूरी होता है। बोहोत ही शौक़ हो तो, चार कुर्सिया और एक छोटा टेबल रख ने जितनी जगह पे हरियाली लगायें...और टेबल कुर्सी वहाँ तभी लाएँ, जब बैठना हो...अन्यथा, जहाँ, टेबल कुर्सी की छाया पड़ेगी, या दबाव पडेगा, वहाँ, हरियाली नष्ट होने लगेगी।
जैसे, गृह सज्जा/ designing मे texture बोहोत सुन्दर लगता है, बगीचे मे भी उतनाही सुंदर लगता है। texture लाने के कई आसान तरीक़े अपनाए जा सकते हैं...
यहाँ पे लगी पहली तस्वीर मे गौर करें तो वहाँ पे मैंने, मिट्टी का सुराही दार मटका रक्खा है...अतराफमे,( नीचे की ओर) मरमरी फर्श के टुकड़े तथा नदी मे मिलने वाले सफ़ेद गोल पत्थर डालें हैं...उनपे, पीछे लगे गुलमोहर के पंखुडियाँ झड़ी हैं।
इन फर्श के टुकडों के बाहरी छोर से , एक और बड़े,बड़े, पत्थर रचाके क्यारी बनायी है। उस क्यारी और हरियाली को छूने वाली क्यारी के बीछ अलग,अलग किस्म के पौधे और घाँस लगा रखी है। इनपे फूल नही आते, लेकिन, पत्तों के रंग और texture इतना भिन्न ,भिन्न होता है,कि, क्यारी का हर कोना देखने वाले की नज़र आकर्षित कर सकता है। क्यारी भी मैंने टेढी मेढ़ी बना रखी है।
मटके को एकदम से सटके जो घाँस है, उसे "pampas grass"कहते हैं( जिसपे भुट्टे की तरह फूल दिख रहे हैं)। ऐसी "ornamental" घाँस के कई प्रकार होते हैं।
क्यारी मे नज़र आनेवाले पौधों मे रिबन ड्रेसीना के कुछ प्रकार हैं। "anthuriam "इस प्रकार की घाँस बाहरी क्यारी के पत्थरों के बीच लगाई हुई है।
Colius नमक पौधा अपने रंगीन पत्तियों के लिए मशहूर है। आज कल इस पौधेको सैंकडों रंगोमे पाया जाता है। इसकी ५/६ इंच की टहनी काट के मिट्टी मे लगा दें, तो ये जड़ें पकड़ लेता है। इसपे जैसेही फूल नज़र आए, उसकी छटाई कर देनी चाहिए, वरना ये मर जाता है।
"Spider plant" नामक पौधा , पर्यावरण मे से प्रदूषण सोख लेता है। इसकी गुत्थियाँ उगती रहती हैं, और ये बढ़ता रहता है। bamboo grass भी बोहोत सुन्दर लगती है, और इसे अपनी मर्ज़ीके मुताबिक, आकार दिए जा सकते हैं। येभी तेज़ीसे बढ़ती है। इस तरह के पौधे, साथ, साथ लगायें जाएँ तो एक एकरसता नही लगती ...विविधता लगती है। पेड़-पौधों के लगवानी/ बागवानी मे वैसेभी 'mono culture'नही होना चाहिए...अलग,अलग किस्म के पेड़ पौध, एकसाथ होते हैं, तो उनपे लगनेवाली कई बीमारियाँ/रोग, अपने आप दूर हो जाते हैं...Poly culture ये बेहतरीन उपाय है !
मेरा अपना अनुभव है,कि, तुलसी( विशेषकर, श्यामा तुलसी) lantana( इसके लिए हिन्दी शब्द मुझे नही पता), कढ़ी पत्ता, गेंदा, और तत्सम पौधे , जिनका उग्र गंध होता है, अपने आस पास लगे पौधों को कई रोगों से बचा लेते हैं। छज्जों पे बागवानी करनी हो तो हर गमलेमे, चंद तुलसी या गेंदे के बीज डाल देने चाहियें...जड़ों तथा पौधों मे लगने वाली कीटक जन्य बीमारियों से कुछ तो राहत मिल ही जाती है।
सब्जियाँ भी जब हम लगाते हैं( kitchen garden चाहे हो), ध्यान रखना चाहिए,कि, गर( मिसाल के तौरपे), हमें ४ क्यारियाँ पालक की लगानी हैं, तो हर क्यारी के बीछ, लहसुन, प्याज़ या अन्य कोई सब्ज़ी की क्यारी हो...पत्तों पे लगने वाली कई बीमारियाँ, क़ुदरत अपने आपही दूर कर देती है....इसीलिए गौर तलब है, कि, कुदरतन उगे जंगल-वनोंमे हमेशा भिन्न भिन्न प्रकार की जाती प्रजातियाँ होती हैं..वहाँ कौन कीटक नाशक छिड़कने जाता है?
रेतीका भी प्रयोग बगीचे मे "texture" लाने के लिए किया जा सकता है।
तालाब तथा बारिशमे इकट्ठे हुए पानी मे " राम बाण" नामक एक घाँस उगी मिलती है। उपरसे दूसरी तस्वीर मे, इसे मैंने एक छोटा-सा "pond" बनाके, उसमे लगा दिया था..तलिए मे मिट्टी है...पर मिटते डालने से पूर्व, सिमेंट लगा के अच्छी तरह water प्रूफिंग कर ली थी।
इस घाँस के जो भुट्टे नुमा फूल होते हैं, इनका गज़ब औषधीय महत्त्व है। इसीलिये नाम "राम बाण" पडा है। ये भुट्टे नुमा फूल जब फटते हैं, तो उस भूसे को डिब्बे या बोतल मे रखा जा सकता है। गहरे घाव पे, जहाँसे ज़ोरदार रक्तस्राव हो रहा हो, उसमे ठूंस दिया जाय तो खून बहना रुक जाता है। खेतों मे काम करने वाले मजदूरों के लिए तो ये बेहद कारगर उपाय है। फर्स्ट aid के तौर पे बेमिसाल...डॉक्टर के पास पोहोंच ने तक,अतिरिक्त रक्तस्राव रोका जा सकता है।
एक और कारगर उपाय होता है,( तीक्ष्ण घाव हो तो,): दवाई की दूकान मे उपलब्ध surgical cotton को चिमटे मे पकड़, गैस की सिगडी पे जला लेना और घाव मे ठूँस देना। जलने के कारण रूई, निर्जन्तुक तो होही जाती है...खैर,ये थोडा विषयांतर हो गया...!
इसी गोलाकार बगीचेकी रचना मे, एक और गड्ढा बनाके,उसमे छोटा electric पम्प लगा लिया...उसे फर्शके टुकड़े से ढँक के, उपरसे एक गमला रख दिया। शाहबादी फर्श का चौकोर उसके ऊपर रख दिया..जिस के कारण पम्प नज़र नही आता था..और उस फर्श पे एक गमला...
पम्प चलने पे,उस pond मे से पानी खींचा जाता, और सुराहीदार मटके के मूहमेसे छलक, दोबारा उसीमे गिरता...ऐसी रचना को "water scupture" कहा जाता है। खैर, मैंने इसका बोहोत ही कम खर्चीला तरीक़ा अपनाया...ये पम्प भी, बिना इस्तेमाल के पड़ा हुआ था, उसका इस्तेमाल हो गया...
सफ़ेद पेंट किया हुआ "बर्ड हाउस" जो एक लकडी के खंभे पे लगा है, उसमे स्विच बोर्ड है(ऊपर से तीसरी तस्वीर)....जिसमे पम्प का स्विच है....पम्पके पीछे "dry water fall", पत्थरों के ज़रिये रचा था...उसपे फाइबर से बने लैंप रखे थे...जो दिनमे पत्थरकी तरह दिखते थे, रात मे उनमे बल्ब जलाये जा सकते थे...इन सभी के स्विच, उसी "बर्ड हाउस" मे थे...
ये गोलाकार रचना, "ड्राइव वे" के बीच, जहाँ से बाईं ओरसे गाडी आती और बंगलेके पोर्च मे जाती...निकलते समय, दाहिनी ओरसे निकल सकती। तीसरी तस्वीर मे आप उस बड़े-से ,दो मंज़िले मकान का पोर्च तस्वीर देख सकते हैं.....नासिक मे स्थित महाराष्ट्र पुलिस अकादमी के director का ये मकान है। जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, इस मकान को बने १०० साल पूरे हो चुके हैं।
जहाँ एक लकडी की पुलिया दिखाई पड़ती है, वहाँ भी मैंने एक छोटा-सा pond बनाके,पुराने बरगद आदी के पेडों पे उल्टे मटके लटका दिए थे...जिसमे बल्ब लगा रखे थे..."hanging lamps" का मुझे सबसे सस्ता और सरल तरीक़ा लगा था।
इसी मकान मे रहते ,पुलिस सायंस कांग्रेस का आयोजन हुआ था, जिसे महाराष्ट्र पुलिस अकादमी ने अपना यजमान पद दिया था...बगीचे के बारेमे सबसे बढिया compliment मुझे मिला था....हरदिल अज़ीज़, व्यंग चित्रकार R . K . Laxman द्वारा...Laxman बेहद मुँह फट व्यक्ती जाने जाते हैं..गर उन्हें कोई जगह या आयोजन अच्छा नही लगता, तो बेहिचक कह देते हैं! दिखावे की तारीफ़ तो बाद की बात...सवाल ही नही उठता...!
आखरी तस्वीर, जिसमे टेढी मेढ़ी पगडंडी-सी एक कुटिया के पास जाती नज़र आती है...उसके किनारे ज़मीं कंद लगाया हैं...ये दो रंगों मे उपलब्ध होता हैं, एक हरा, जो तस्वीर मे नज़र आ रहा है, दूसरा जामुनी..(पत्तोंके रंग के बारे मे लिख रही हूँ)...हर कुछ हफ्तों से इन्हें उखाड़, ज़मीं कंद निकाले जा सकते हैं... ६/७ इंच के तुकडे मिट्टी मे लगा दें, तो नए सिरेसे ये " ग्राउंड कवर" फ़ैल जाती है...और खूब तेजीसे बढ़ती है...जामुनी रंग की साथ ना लगायें तो बेहतर...हरे रंग की बेल उसे बढ़ने या फैलने नही देती...दबा देती है। इस पौधे को गमलों मे नही लगाया जा सकता, नाही बेल की तरह, किसी मंडवे पे चढ़ा सकते हैं...नाम परसे ही ये खासियत ज़ाहिर है..!
( मैंने अपनी ओरसे तो वर्तनी बड़े गौरसे संपादित की है। गर कुछ रह गया हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ ! एक बड़ी मज़ेदार गलती मुझसे लगातार हुई थी...जिसे माँ को पढ़ के सुनाया तो,वो हँस-हँस के लोट पोट हो गयीं...!
मैंने "पत्तियों " की बजाय, हर बार, अनजाने मे "पती" टाइप किया था...ख़ास कर वहाँ, जहाँ मै मीली बग के बारेमे लिख रही थी...)
अलग, अलग शेहरोंमे हुए तबादलों के समय, मैंने बनाये कुछ बगीचे...जिन्हें कढाई मे तब्दील करनेके लिए रुकी हूँ...कई तो कर चुकी हूँ...दुर्भाग्यवश उनकी तस्वीरें नही निकालीं....